फ़िल्म : मधुमती
किस सन में रिलीज़ हुयी : 1959
किसने कहा : चरणदास (जॉनी वॉकर)
किससे कहा : आनंद (दिलीप कुमार)
सम्वाद लेखक : राजिन्दर सिंह बेदी
तीन घंटे लम्बी फ़िल्म है, पर बेहतरीन फ़िल्म है। पूरे तीन घंटे आप को सीट से बाँध कर रखती है। इस फ़िल्म को पचास साल हो चुके हैं, पर आज भी ताज़ा दम है। क्या संगीत था , क्या अदाकारी थी और क्या तस्वीर थी। भुलाए नही भूलती। डॉ हरिवंश राय बच्चन की एक कविता याद हो आती है
अर्धशती की होकर भी षोडषवर्षी मधुशाला
बस मधुशाला की जगह मधुमती कर दीजिये।
ये दृश्य मशहूर गीत 'सुहाना सफर और ये मौसम हसीं' के तुंरत बाद आता है। आनंद बाबू इस्टेट का रास्ता ढूंढते हुए जा रहे हैं। अचानक उनके सामने चरणदास आ जाता है - पर सीधा नहीं उलटा। चरणदास ने शायद पी रखी है और वो पेड़ से उलटा लटका हुआ है।
चरणदास अपना परिचय यूँ करवाता है
"डरो मत, मैं आदमी नही हूं"
कभी कभी मुझे इस बात का एहसास होता है की इंसान को सबसे ज़्यादा इंसान से ही डरना चाहिए।
नैना देवी भगदड़ में बम ब्लास्ट से ज़्यादा इंसान मरे। बम ब्लास्ट करने वाले आतंकवादी थे और भगदड़ के जिम्मेदार थे साधारण 'भगवान से डरने वाले' इंसान। फिर भी ज़्यादा बड़ा हादसा था - इंसानों का किया हुआ।
क्या जुमला लिखा है राजिंदर सिंह बेदी साहब। जवाब नहीं आपका।
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