फ़िल्म : श्री 420
किस सन में रिलीज़ हुयी : 1955
किसने कहा : राज (राज कपूर)
किससे कहा : विद्या (नरगिस)
सम्वाद लेखक : ख़्वाजा अहमद अब्बास
मश्हूर पहेली वाले गाने 'ईचक दाना बीचक दाना' ख़त्म होने के तुरंत बाद, राज घंटी बजा देता है और सारे बच्चे भाग जाते हैं. विद्या बहुत नाराज़ होती है. वो राज को अनपढ गंवार बुलाती है और पूछ्ती है कि क्या वो ये चाहता है कि वो सारे बच्चे भी उसी की तरह अनपढ निकलें.
राज इस बात का विरोध करता है. ये लीजिये पढिये उन दोनों के बीच का वार्तालाप
राज : मैं ग्रॅजुयेट हूं...बी ए पास
विद्या : बी ए पास...हह...एक और झूठ. ज़रा अपना हुलिया तो देखो. कॉलिज के पढे लिखे ग्रॅजुएट्स की ये सूरत होती है?
राज : खा गयीं ना आप भी कपडों से धोखा!
अगर आज मैं बढिया सूट पहने, शानदार गाडी में बैठकर यहां आता तो शायद आप मुझे बदतमीज़, जाहिल गंवार न कह्तीं ...और इसमे आपका कोई दोष नहीं है...जिस दुनिया में आप रहतीं हैं, वहां इंसान के दिल और दिमाग़ की नहीं, उसके कपडों की इज़्ज़त होती है. शार्कस्किन के सूट, सिल्क की कमीज़ें और जॉर्जॅट की साड़ियों की इज़्ज़त होती है".
उस दौर में फ़िल्मों में भी नेहरूवी समाजवाद तारी रहता था. और ऐसे कई मकालमे उन दिनों हर दूसरी फ़िल्म मे जगह पाते थे. पर अगर उस दौर के परिवेष और राजनीति को दरकिनार कर के देखें, तो भी इस जुमले में बड़ी सच्चाई है. या तो आप राज की तरह शिकायत कर सकते हैं, या दूसरे हाफ़ के राज ही की तरह इस सच्चाई को अपने फ़ायदे के लिये इस्तेमाल कर सकते हैं.
1 comment:
तो इसे अपने पक्ष में इस्तेमाल कीजिये, जहाँ इस दुनिया में 'शैबी' लोग भरे पड़े हैं, आप कुछ स्मार्ट और साफ़ सुथरे एपियरेंस से लोगों का विश्वास आसानी से पा सकते हैं.
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