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Wednesday, August 27, 2008

उठ जायेंगे दो चार मुलाकातों में

फ़िल्म : वक़्त
किस सन में रिलीज़ हुयी : 1965
किसने कहा : रविंदर कुमार खन्ना उर्फ़ रवि (सुनील दत्त)
किससे कहा : राजा (राज कुमार)
सम्वाद लेखक : अख़्तर उल ईमान

मीना हवाई अड्डे जाती है रवि को रिसीव करने। राजा भी मीना को ढूंढते हुए वहाँ पहुँच जाता है। इन दो रकीबों के दरमियान जो बातचीत होती है वो काफ़ी दिलचस्प है। जिसका जिक्र मैंने पहले भी एक पोस्ट में किया है


रवि राजा के कोट पर टांके हीरो की तारीफ़ करता है। राजा जवाब देता है -
"बढिया तो हम भी बहुत हैं, मगर ये आपको अभी पता नहीं चलेगा"
रवि भी हाज़िर जवाब है , कहता है
"इतने पर्दे डाल रक्खे हैं आपने - कोई बात नहीं - उठ जायेंगे दो चार मुलाक़ातों में"
मुझे मेहदी हसन की मशहूर ग़ज़ल का वो शेर याद हो आता है

"प्यार जब हद से बढ़ा सारे तक़ल्लुफ़ मिट गये
आप से फिर तुम हुये फिर तू का उनवां हो गये"

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