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Friday, August 29, 2008

कुछ लोग वैसे भी तो होते हैं, जो कहीं के नहीं होते

फ़िल्म: काला पत्थर
किस सन में रिलीज़ हुई : 1979
किसने कहा : विजय पाल सिंह (अमिताभ बच्चन)
किससे कहा : डॉ सुधा सेन (राखी गुलज़ार)
सम्वाद लेखक : सलीम-जावेद


विजय के घावों पर मरहम लगाते वक़्त, डॉ सुधा उससे पूछती है कि वो कब से इस खान में है. हिन्दुस्तान मे अक्सर अजनबियों से बस यूंही बात करते वक़्त भी लोग उनकी पैदाइश या ज़ात पात का पता लगाने की कोशिश करते है. अब हालत ये है कि ये सवाल बातचीत को जारी रखने के लिए ज़रूरी लगने लग गये है. डॉ सुधा भी ऐसी ही कुछ कोशिश करती है जब वो विजय से पूछती है - तुम वैसे कहां के हो?

अब विजय बाबू वैसे भी सीधे सवाल का सीधा जवाब देने के आदी नही हैं. सिर्फ़ काला पत्थर मे ही नहीं, बाक़ी फ़िल्मों में भी. उन्हे तर्क कुतर्क करने की आदत है. आपको याद ही होगा जब उनका भाई उनसे साइन करने के लिए कहता है, तो वो कहते हैं कि जाओ पहले उस आदमी का साइन लेके आओ जिसने मेरी मां को गाली देके नौकरी से निकाल दिया था वग़ैरह वग़ैरह. अब उस वक़्त गूग्ल पीप्ल सर्च भी नहीं था. बेचारा रवि करता भी तो क्या. ग़ुस्से में घर छोड के चला गया. ख़ैर इस सम्वाद पर लौटते हैं. अब ये मौक़ा भी विजय साहब हाथ से कहां जाने देने वाले थे. लोहा गर्म था, मार दिया हथौडा. जानते हैं इस सीधे से सवाल का उन्होंनें क्या जवाब दिया. 

"बचा सवाल कि मैं कहां का हूं, तो कुछ लोग वैसे भी तो होते हैं, जो कहीं के नहीं होते"

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