फ़िल्म : मुग़ल ए आज़म
किस सन में रिलीज़ हुई : 1960
किसने कहा : शहंशाह अकबर (पृथ्वीराज कपूर)
किससे कहा : बहुत से लोगों से
सम्वाद लेखक : कमाल अमरोही, वजाहत मिर्ज़ा, अमान, एहसान रिज़वी
पन्द्रह साल लगे थे इस फ़िल्म के बनने में, बहुत से बदलाव हुए, फिर भी इस फ़िल्म में कुछ तो बात है, जो इसकी हस्ती ज़ेहन से मिटती नहीं. मगर बरसों पहले जब मैंने ये फ़िल्म हॉल पर देखी थी, तो एक लफ़्ज़ नें मेरे दिलो दिमाग़ में घर कर लिया था. ये लफ़्ज़ मैं सब को सुनाता था. ये दीगर बात है, कि कोई मानता नहीं था. पर बहुत शक्ति की अनुभूति होती है जब आप ये लफ़्ज़ कहें और लोग मान लें.
लफ़्ज़ के मानी है ख़ाली करना, या एकांत चाहना, तलाक़ देने के मानी से भी इस्तेमाल किया जाता है. पर उस मतलब से इस फ़िल्म में नहीं इस्तेमाल हुआ है. तो जब कभी भी ज़िल्ले इलाही शहंशाह अक्बर ख़लवत चाहते थे, तो बस ये एक लफ़्ज़ कह देते थे, और सब चले जाते थे. ये लफ़्ज़ था
'तख़लिया'
अंग्रेज़ी में एक लफ़्ज़ होता है - dismissed. पर उसमें वो बात नहीं है जो तख़लिया में है. वो एक आदमी को अपने हुज़ूर से दूर भेजने का हुक्म होती है. ये ऐसा हुक्म है, जिससे हज़ार लोग दूर भेजे जा सकते हैं. तो कार्यकुशलता यानी एफ़िशियेंसी के नज़रिये से ये बेहतर है.
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