फ़िल्म : मुग़ल ए आज़म
किस सन में रिलीज़ हुई : 1960
किसने कहा : संगतराश (कुमार)
किससे कहा : अनारकली के बुत से
सम्वाद लेखक : कमाल अमरोहवी
मुग़ल ए आज़म की जितनी तारीफ़ की जाये कम है. उस से महज़ सात साल पहले बनी फ़िल्म अनारकली भी बहुत बडी हिट थी, मगर सिवाय संगीत के, वो फ़िल्म मुग़ल ए आज़म से हर मामले में उन्नीस ही है.
अकबर अपने संगतराश को इनाम के तौर पर अनारकली देने की पेशकश करता है. वो पहले ही सलीम को दक्कन में जंग लडने भेज चुका है और सलीम की ग़ैर हाज़िरी में उसकी मुहब्बत को ठिकाने लगाना चाहता है. एक बूढे संग तराश के पल्ले बान्धने से बेहतर क्या इलाज हो सकता है इस मर्ज़ का.
संगतराश - जिसने कि अनारकली की ख़ूबसूरत मूर्ति को बनाया है - उसके और अकबर के बीच के इस दिलचस्प सम्वाद को देखिये -
अ: संगतराश हमें ये जानकर ख़ुशी है कि तुम्हारे जैसे फ़नकार भी हमारी सल्तनत में आबाद हैं
स : मगर सच तो ये है कि मैं आपकी सल्तनत में बरबाद हूं
अ: अब नहीं रहोगे. हम तुम्हारे फ़न की ख़ूबसूरती को मानते हैं, और तुम्हें इनाम ओ इकराम से मालामाल करते हैं.
स: फ़न की ख़ूबसूरती के लिए ये इनामात बहुत है, मगर फ़न की सच्चाई के लिए बहुत कम.
अ : फिर क्या चाहते हो.
स : मैं अपने फ़न की सच्चाई को सल्तनत के गोशे गोशे में फैलाना चाहता हूं
अ : तुम्हें इजाज़त है
.
स : ज़हे क़िस्मत. जो करम अधूरा था, उसे ज़िल्ले इलाही की फ़राग़ दिली ने पूरा कर दिया.
अ : नहीं... अभी पूरा नहीं हुआ. तुम्हारी ज़िन्दगी में एक मुस्कुराती हुई बहार की कमी है. हम तुम्हें इनाम में वो जीती जागती नाज़नीन भी अता करते हैं, जो तुम्हारे फ़न को पेश करने का ख़ूबसूरते सहारा बनी थी.
स : यानि ?
अ : यानि कल अनारकली से तुम्हारी शादी कर दी जाएगी
.
स : लेकिन ज़िल्ले इलाही.
अ : क्या ये इनामात कम हैं?
स : बहुत हैं. उमीद से कहीं ज़्यादा. आज मैं ज़िल्ले इलाही के इंसाफ़ का क़ायल हो गया
अ : अब तुम जा सकते हो.
संगतराश वापस अपने घर लौट कर अपनी बनाई अनारकली की मूर्ति के सामने कहता है
"शहंशाहों के इंसाफ़ और ज़ुल्म में किस क़दर कम फ़र्क़ होता है"
और ज़ोर ज़ोर से हंसता है.
क्या ख़ूबसूरत जुमला है. कभी अपने बॉस की कारगुज़ारियों पर ग़ौर कीजियेगा. इस जुमले की सच्चाई ज़ाहिर हो जाएगी.
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