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Friday, April 20, 2012

दीन में दाढी होती है, दाढी में दीन नहीं

फ़िल्म : ख़ुदा के लिए
किस सन में रिलीज़ हुई : 2008
किसने कहा : मौलाना वली (नसीरुद्दीन शाह)
किससे कहा : अदालत से
सम्वाद लेखक : शोएब मंसूर 


इस सम्वाद से मुसलिम देशों में काफ़ी बवाल उठा था. पर बहुत लोगों ने इस फ़िल्म को सराहा भी था. मुझे ये फ़िल्म ठीक ठाक ही लगी. बस एक जगह एक किरदार ताजमहल को पाकिस्तान की उपलब्धि बताता है - उस जगह लेखक की ख़ाम ख़्याली पर तरस आया.

बहरहाल, मौलाना वली को एक मुक़दमे में गवाही देने के लिए बुलाया जाता है. तब शादी, संगीत और लिबास पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं. लिबास की अहमियत पर उनका ये मानना है, कि लिबास को देश और मौसम के हिसाब से बदलना ही मुनासिब है. 

"लिबास का तअल्लुक़ मआश्रत (society) से है मज़हब से बिल्कुल नहीं."

और जब वो दाढी के बारे में भी यही कहते हैं कि उसकी पाबन्दी नहीं है, तो वक़ील साहब कहते हैं कि उन्होंने ख़ुद भी दाढी रखी हुई है. जवाब में मौलाना ये जुमला इस्तेमाल करते हैं.

"दीन में दाढी होती है, दाढी में दीन नहीं"


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