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Friday, July 29, 2011

अरे नौकरी मिली है तनख़ाह नहीं

फ़िल्म : चश्मे बद्दूर
किस सन में रिलीज़ हुई : 1981
किसने कहा : सिद्धार्थ पराशर (फ़ारूक़ शेख़)
किससे कहा : नेहा राजन (दीप्ति नवल)
सम्वाद लेखक : सई परांजपे

सिद्धार्थ एक सुल्झा हुआ नौजवान है, जो अपने दिलफेंक दोस्तों के साथ दिल्ली में एक फ़्लॅट में रहता है. उसके दिलफेंक दोस्त लडकी पटाने की कोशिश करते रह जाते हैं, और सिद्धार्थ साहब छुपे रुस्तम निकलते हैं. अपनी प्रेमिका नेहा के साथ वो अक्सर रजनीगन्धा रेस्तरां में मिलते थे, और एक टूटी फ़्रूटी आइस क्रीम और एक कॉफ़ी मंगाते थे. एक दिन इसी तरह जब सिद्धार्थ नेहा से मिलता है, तो उसे ये ख़ुशख़बरी देता है कि उसे नौकरी मिल गई है. नेहा तुरंत वेटर (क़ीमती आनन्द) से 'डब्ल टूटी फ़्रूटी' लाने को कहती है. 

अब सिद्धार्थ साहब सुलझे हुए शख़्स थे. तुरंत नेहा को टोकते हुए कहते हैं,

'अरे नौकरी मिली है तंख़ाह नहीं' 

अक्सर हमारे दोस्त यार (जो खाने पीने के बहाने ढूंढते रहते हैं) किसी भी छोटी बडी ख़ुशख़बरी की भनक लगते ही 'ट्रीट' की फ़रमाइश करने लगते हैं. तो अगर आपके दोस्त लोग शायिस्ता हैं, तो आप उन्हें टोकने के लिए इस नफ़ीस जुमले का इस्तेमाल कर सकते हैं. और अगर आपके दोस्त लोग बेशरम की श्रेणी में आते हैं, तो एक दूसरा जुमला चस्पाँ कर दीजिये

"गांव बसा नहीं मंगते आ गए"


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