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Thursday, July 14, 2011

पैसे मांगे तो पासबुक दिखा दी

फ़िल्म : घरौन्दा
किस सन में रिलीज़ हुई - 1977 
किसने कहा : सुदीप (अमोल पालेकर)
किससे कहा : गुहा (साधु मेहर)
सम्वाद लेखक : गुल्ज़ार

शंकर शेष की पुरस्कृत कहानी पर बनी इस फ़िल्म का विषय था आशियाना बनाना. उस ज़माने मे जब एच डी एफ़ सी भी शुरु नही हुई थी, एक आम मध्यम वर्गीय परिवार के लिए घर का ख़्वाब देखना भी दूभर था. इस परिदृश्य मे एक नौजवान जोडा भी ये ख़्वाब देखने की ग़लती कर बैठता है. आगे क्या होता है. ये ख़्वाब उन्हे कितना महंगा पडता है - यही दर्शाती है ये फ़िल्म. 

अगर इस सम्वाद की बात करे, तो सिचुएशन कुछ यू है, कि हमारा नायक सुदीप हमेशा पैसे जुटाने की धुन मे रहता है. अपने घरौन्दे के ख़्वाब को सच करने के लिए. इसी सिलसिले मे वो अपने चाल के साथी अब्दुल (जलाल आग़ा) से पैसे मांगता है. पर वहां उसकी दाल नहीं गलती. 

बाद मे जब गुहा उससे कहता है कि वो क्यों लोन लेने के चक्करों मे पडा रहता है. अपने दोस्तों से क्यों नहीं मांग  लेता, तो जवाब मे अपने दोस्तो पे कटाक्ष करते हुए सुदीप कहता है - 

"साले से पैसे मांगे तो पास बुक दिखा दी"

अख़लाक़न हम लोगो से बात करते हुए हालचाल पूछते है, और जवाब मे कह देते है कि सब कुछ ठीक ठाक है. पर अगर कभी हम किसी को अपना दुखडा सुना भी दें, तो मुमकिन है अख़लाक़ का वो बारीक नक़ाब तार तार हो जाये, और असली चेहरा नज़र आ जाये. या जैसे सुदीप साहब फ़र्मा गये.

"पैसे मांगे तो पासबुक दिखा दी "

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