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Saturday, August 15, 2009

जो आदमी अपने नसीब को कोसता रह्ता है, उसका नसीब भी उसे कोसते रहते हैं

फ़िल्म : गाइड
किस साल में रिलीज़ हुई : 1965
किसने कहा : राजू (देव आनन्द)
किससे कहा : रोज़ी मार्को (वहीदा रहमान)
सम्वाद लेखक : विजय आनन्द

रोज़ी अपने पति की बेरुख़ी से तंग आकर एक दिन नींद की गोलियाँ खा लेती है. उसका पति मार्को (किशोर साहू) उदयपुर की गुफाओं में मसरूफ़ है. यहां रोज़ी बच जाती है और जब वो इस सदमे से उभर रही थी, राजू जबरन मार्को को गुफाओं से ले आता है. मार्को बेहद नाराज़ होता है. उसके मुताबिक़ रोज़ी ने जान बूझ कर ऐसा किया है. क्योंकि अगर वो वाक़ई में मरना चाहती तो दो गोलियां और ले लेती. ये सुन कर रोज़ी आवेश में आकर बाहर भागती है और एक तालाब में कूदने का प्रयास करती है. राजू उसे ऐसा करने से रोक लेता है. फिर उसके पीछे घूमता रहता है, क्योंकि उसे डर है कि वो कहीं फिर से ऐसी कोशिश ना करे. फिर जब रोज़ी का कोध शांत हो जाता है, तो वो बैठ कर बतियाने लगते हैं. राजू अपने पेशे के मुताबिक़ रोज़ी को वहां के दृश्य दिखाने और समझाने लगता है. तालाब के ऐन बीच में एक जज़ीरा दिखाता है वो रोज़ी को. वो कहता है कि उस जज़ीरे में एक कुत्ते की मज़ार है. रोज़ी ये सुन कर चौंक उठती है. राजू कहता है कि वो कुत्ता राजा का चहेता था. रोज़ी एक ठंडी आह भरती है और कहती है कि वो कुत्ता उससे बेहतर था. राजू फिर अपने चिर परिचित अन्दाज़ में कहता है
""जो आदमी अपने नसीब को कोसता रह्ता है, उसका नसीब भी उसे कोसते रहते हैं"
गाइड को लोग एक कालजयी कृति मानते हैं - इसे अक्सर क्लासिक की उपमा दी जाती है. पर मेरे ज़ेहन में हमेशा लेखक आर के नारायण का लिखा लेख 'मिस-गाइड' आता है, जिसमें उन्होंने देव आनन्द की इस कृति की आलोचना की थी. मैं गाइड के अंग्रेज़ी रूपांतर को देखने का बेहद मुश्ताक़ हूं. मैंने सुना है कि वो तक़रीबन एक घंटे छोटी है.

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