फ़िल्म : रंग बिरंगी
किस सन में रिलीज़ हुई : 1983
किसने कहा : रवि कपूर (देवेन वर्मा)
किससे कहा : भाडे का ऍक्टर (नामालूम)
सम्वाद लेखक : अशोक रावत
इस फ़िल्म की सबसे दिलचस्प लाइन शायद आख़िर में आती है, पर मैं उसका बखान नहीं करने वाला. उसे समझने के लिए तो आपको फ़िल्म देखनी पडेगी. इसको कहते हैं उत्पल दत्त साहब.
"अमिताभ बच्चन पागल हो गया है? ये तो होना ही था!"
ख़ैर फ़िलवक़्त मैं उस लाइन की बात नहीं कर रहा हूं. रवि अपनी बहन निर्मला (परवीन बाबी) और जीजाजी अजय (अमोल पालेकर) की ज़िन्दगी में रोमांस वापस लाने के लिए एक ड्रामा रचते हैं. उस ड्रामा के पटकथा लेखक वो ख़ुद हैं. रवि एक ऍक्टर को भाडे पे लेता है, एक सेठ की भूमिका निभाने के लिए. प्लान ये है कि ये भाडे का सेठ अजय को एक रेस्तरां में किसी सौदे के सिलसिले में उलझाए रखेगा, और उसी समय निर्मला एक ग़ैर मर्द जीत (फ़ारूक़ शेख़) के साथ उसी रेस्तरां में ज़ोर ज़ोर से हंसेंगी. ताकि अजय की नज़र उन पर पडे और अजय के अन्दर ईर्ष्या जागे.
जैसे ही ये भाडे का ऍक्टर मौक़े पर पहुंचता है, सौ के बजाय दो सौ रुपए मेहनताना मांगने लगता है. रवि उस वक़्त ये जुमला कसता है
"मेक अप लगाते ही रेट डबल कर दिया?"
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