फ़िल्म : शिवा
किस सन में रिलीज़ हुई : 1989
किसने कहा : भवानी (रघुवरन)
किससे कहा : कॅमरे से
सम्वाद लेखक : इक़बाल दुर्रानी
ये मेरी पसन्दीदा फ़िल्मों में शुमार है. हालांकि हिन्दी सिनेमा के दर्शकों का इस फ़िल्म में रामगोपल वर्मा, नागार्जुन जैसे लोगों से तआरुफ़ हुआ, पर जो शख़्स सबको अपनी प्रतिभा से प्रभावित कर गया वो था रघुवरन. तमिळ लहजे में हिन्दी सम्वाद इतने इबरतनाक तरीक़े से पहले किसी ने नहीं कहे थे. पहले तमिळ लहजा महमूदनुमा कॉमेडी का सबब हुआ करते थे. ऐसे परिदृश्य में एक कलाकार अगर इसी लहजे में बोलकर लोगों को डराने में कामयाब हो जाए, तो वो उस कलाकार की क्षमता का सबूत है.
बहरहाल, भवानी एक ग़ुंडा है जो स्थानीय राजनेता तिलकधारी (परेश रावल) के दिशानिर्देशों पर काम करता है. विरोधी राजनेता कांता प्रसाद (गोगा कपूर) किसी मुआमले पर बातचीत करने के लिए एक नदी के पुल पर भवानी से मिलते हैं. कांता भवानी के बॉस का कच्चा चिट्ठा खोलने की धमकी देता है. बदले में भवानी कांता को मार देने की धमकी देता है. कांता भवानी को चुनौती देता है और कहता है कि वो उसे मार नहीं सकता. क्योंकि अगर वो उसे मारेगा तो पार्टी के सारे कार्यकर्ता तिलकधारी के ख़िलाफ़ हो जाएंगे. और तिलकधारी को ये बात नागवार गुज़रेगी.
भवानी कांता को गले लगाने की मुद्रा में आगे बढता है और अचानक उसके पेट में छुरा भोंक कर उसे मार डालता है. फिर हम जैसे दर्शकों को समझाने हेतु कॅमरे की तरफ़ मुड के कहता है कि मौत का पता तो तब चलेगा जब लाश मिलेगी. और फिर आता है भवानी का ये सम्वाद. नथुने फुला के अपने चिर परिचित अन्दाज़ में वो कहता है,
"ओवर कॉंफ़िडेंस नहीं रहना चाहिये"
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