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Wednesday, August 3, 2011

सिर्फ़ मैं हूं

फ़िल्म : गाइड
किस सन में रिलीज़ हुई : 1965
किसने कहा : राजू गाइड  की आत्मा (देव आनन्द)
किससे कहा : राजू गाइड का शरीर (देव आनन्द) 
सम्वाद लेखक : विजय आनन्द

ये फ़िल्म गाइड का मशहूर डायलॉग है. फ़िल्म के क्लाइमॅक्स में  राजू को मरते वक़्त अपनी आत्मा दिखती है. उसकी आत्मा उसे ज़रा गीता नुमा ज्ञान देती है. और ये लाइनें मुझे काफ़ी पसन्द हैं. लीजिये आप भी पढिए :


"मौत एक ख़याल है जैसे ज़िन्दगी एक ख़याल है. न सुख है ना दुख है, न दीन है न दुनिया, न इंसान न भगवान. सिर्फ़ मैं. मैं हूं. मैं. मैं. सिर्फ़ मैं"


अंत में आदमी सिर्फ़ अपने आप को जवाबदेह होता है. अपने ही मयार को बेहतर करने की कोशिश करता है. अपनी ही नज़रों में हीरो या ज़ीरो बनता है. 'फिर क्यों संसार की बातों से भीग गये तेरे नैना'. गीता में भी क्या ख़ूब कहा गया है

सुख दु:खे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि

या अगर आप माइक्ल जॅक्सन के मुरीद हों, तो "start with the man in the mirror, ask him to change his ways". और आप सिर्फ़ शीशे में नज़र आने वाले उस इंसान को जवाब देह हैं. 

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