फ़िल्म : पति पत्नी और वो
किस सन में रिलीज़ हुई : 1978
किसने कहा : शारदा (विद्या सिन्हा)
किससे कहा : रंजीत चड्डा (संजीव कुमार)
सम्वाद लेखक : नामालूम
बी आर चोपड़ा साहब की निर्देशित फ़िल्मों में ये इक्लौती कॉमेडी थी. इस फ़िल्म के लिए कमलेश्वर को बेहतरीन पटकथा लेखन का फ़िल्मफ़ेअर पुरस्कार मिला था. कहानी विवाहेतर सम्बन्धों पर एक मज़ाहिया टिप्पणी है. बहरहाल, फ़िल्म शुरु होते ही रंजीत और शारदा के बीच फ़टाफ़ट प्रेम होता है और वो पहले दस मिनट में ही शादी कर लेते हैं. आम हिन्दी फ़िल्मों में ये सब करने में तीन घंटे लग जाते हैं. ख़ैर शादी की रात रंजीत के दोस्त उसको हिदायत देते हैं कि शादी की पहली रात जो 'बिल्ली मार जाता है' उसका पलडा हमेशा भारी रहता है. इसी हिदायत के चलते, सुहाग रात ख़त्म होते ही रंजीत सोचता है कि रात को तो बिल्ली मारी नहीं. चलो सुबह ही मार लेते हैं. वो अपनी बीवी शारदा पर रौब जमाने लगते हैं. कुछ यूं -
"मुझे सुबह गरमा गरम चाय चाहिये. वर्ना..."
शारदा पूछने ही लगती है
"वर्ना क्या?"
कि रंजीत ज़ोर से चिल्ला के "वर्ना" इस तरह से दोहराते हैं, कि शारदा डर के उनका हुकुम बजाने के लिए चली जाती हैं. ये सिलसिला चलता रहता है. एक बार किसी दौरे पे जाने से पहले, रंजीत यही पैंतरा इस्तेमाल करते हैं और बीवी से कहते हैं कि उन्हें सुबह नहाने के लिए गरम पानी मिल जाना चाहिये. आदतन 'वर्ना' लफ़्ज़ जोड देते हैं.
पर अब तक उनके इस रवैये की इंतेहा हो चुकी होती है, और झुंझला के शारदा कुछ इस तरह पूछती है
"वर्ना क्या?"
कि भीगी बिल्ली बन कर रंजीत कहते हैं
"नहीं तो मैं ठंडे पानी से ही नहा लूंगा."
तो अगर आपकी ज़िन्दगी में भी कोई धौंस दिखा रहा हो, और आप भी चट गए हों, तो उनकी धौंस की हवा निकालिए. पूछिये - वर्ना क्या?
1 comment:
संवाद शायद कमलेश्वर के थे
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